उत्तराखंड की राजनीति में एक ऐसा चेहरा जो धरातल से जुड़ा है, वह हैं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी। खटीमा के नगरा तराई में जब आज सुबह उन्होंने खेत की पगडंडी पर कदम रखा, हाथ में धान की नर्सरी ली और कीचड़ भरे खेत में रोपाई शुरू की, तो यह केवल एक प्रतीकात्मक कार्य नहीं था। यह उस मिट्टी से उनके रिश्ते का सार्वजनिक स्मरण था, जिसने उन्हें गढ़ा है।
मुख्यमंत्री जब खेत में धान रोप रहे थे, तो हर किसान और मातृशक्ति को अपना ही सपूत दिखा वही सपूत जिसने गांव से निकलकर राज्य की बागडोर संभाली, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भुलाया। इस अवसर पर धामी ने ‘हुड़किया बौल’ की धुन पर स्थानीय देवताओं, भूमियां, इंद्र और मेघ की वंदना कर यह भी स्पष्ट किया कि उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत उनके निर्णयों और दृष्टिकोण की नींव है। वे आधुनिकता को अपनाने वाले नेता हैं, लेकिन परंपरा को त्यागे बिना। उनकी राजनीति में तकनीक और संस्कृति, विकास और विरासत, आत्मनिर्भरता और आध्यात्म सभी के लिए समान स्थान है। मुख्यमंत्री धामी यह भलीभांति जानते हैं कि खेत की मेड़ पर चलना जितना जरूरी है, उतना ही महत्वपूर्ण है राज्य की नीति की दिशा तय करना। सत्ता की लगाम खींचते समय वे जिस कुशलता से फैसले लेते हैं धर्मांतरण विरोधी कानून से लेकर यूनिफॉर्म सिविल कोड तक वैसी ही कुशलता वे खेत में बैलों की लगाम संभालते समय भी दिखाते हैं। आज जब देश के अधिकांश नेता शहरी गलियारों में कैद हो चुके हैं, पुष्कर सिंह धामी जैसे नेता उम्मीद की उस किरण की तरह हैं, जो यह भरोसा दिलाते हैं कि नेतृत्व अगर जमीनी हो, तो विकास की दिशा सही होती है।
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