यात्रा धार्मिक आस्था का केन्द्र है जिसके लिए शास्त्रों में नियम बनाये गये हैं। पूर्व में चार धाम यात्रा मोक्ष के लिए होती थी जो आज भी लगातार चल रही है। जिसका उदाहरण शास्त्रों में है कि पाण्डव भी अपनी गोत्र हत्या के श्राप को मिटाने के लिए उत्तराखण्ड आये थे इसका नियम है कि पहले यमनोत्री जो सूर्य पुत्री व यमराज की बहिन है जो प्राणी यमुना जी में स्नान ध्यान आदि करता है उसे यमदूत का भय समाप्त हो जाता है वही उसके बाद माँ पापनाशिनी गंगा जी के दर्शन का वर्णन है जो समस्त पाप संताप को हरने वाली है यहाँ पर भी पिण्ड दान व तर्पण करने का विधान है। इसके बाद केदारनाथ नाथ मे भगवान् भोले बाबा के दर्शन के बाद अन्त में भोले नाथ के ईष्ट भगवान् बद्रीनाथ यानि स्वयं नारायण के जो जीव को समस्त बंधनों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करता है। यही पर अन्तिम पिण्ड दान का विधान शास्त्रों में वर्णित है। और इसी जगह पर पाण्डवों ने अपने पित्रो का श्राद्ध कर स्वर्ग रोहणी होते हुए अपने शरीरों को छोड़कर मोक्ष को प्राप्त हुऐ थे। ये संक्षिप्त वर्णन है शास्त्रों में तो व्यापक वर्णन है चार धाम यात्रा का जो यमनोत्री गंगोत्री से शुरू हो।
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